बच्चा हद से ज्यादा एक्टिव हो तो इस बीमारी की आशंका
सेहतराग टीम
हमारे आस-पास अकसर हमें कुछ ऐसे बच्चे दिख जाते हैं जो हद से ज्यादा सक्रिय होते हैं और एक सेकेंड में शांत नहीं बैठते। किसी एक काम में या पढ़ाई में ध्यान लगाना ऐसे बच्चों के लिए बहुत मुश्किल होता है। आम तौर पर हम ऐसे बच्चों को हायपर एक्टिव कहते हैं और मानते हैं कि उम्र के साथ ये अपने आप ठीक हो जाएंगे। मगर ये बच्चों की एक खास बीमारी एडीएचडी का लक्षण भी हो सकता है। एडीएचडी का पूरा नाम अटेंशन डेफेसिट हायपर एक्टिविटी डिसऑर्डर है और जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस बीमारी में बच्चा अति सक्रिय होता है और किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता।
छह से सात फीसदी बच्चे पीड़ित
पूरी दुनिया में करीब 6 से 7 फीसदी बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं। ये बच्चों में तंत्रिका विकास से संबंधित सबसे आम बीमारियों में से एक है जो एकाग्रता, अति सक्रियता और आवेग से संबंधित है। अधिकांश शिक्षक और माता पिता इस बीमारी के संकेतों को नहीं समझ पाते और इसलिए ये बच्चों के लिए कई बार शर्मनाक स्थिति की वजह बन जाती है।
एडीएचडी में बच्चे के लिए एकाग्रचित्त होने और आवेग वाले व्यवहार पर नियंत्रण करना मुश्किल होता है। बच्चा बेचैन रहता है और करीब-करीब हमेशा सक्रिय रहता है। हालांकि इसके लक्षण बचपन में आरंभ होते हैं मगर ये लक्षण बड़े होने तक बने रह सकते हैं।
छोटा होता है दिमाग
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल के अनुसार एडीएचडी से पीड़ित का दिमाग सामान्य बच्चे की अपेक्षा 5 फीसदी तक छोटा होता है, खासकर वैसे क्षेत्र छोटे होते हैं जो एकाग्रचित्तता, उद्वेग पूर्ण व्यवहार का नियंत्रण और लोगों से मेल-जोल के व्यवहार को बढ़ावा देते हैं। डॉक्टर अग्रवाल के अनुसार एडीएचडी से पीड़ित बच्चे अत्यधिक सक्रिय होते हैं और उनमें व्यवहार संबंधित अन्य समस्याएं भी होती हैं।
वैसे तो एडीएचडी को पूरी तरह ठीक करने का कोई तरीका नहीं है मगर शुरुआती कंडीशन में इलाज करने पर इसके लक्षणों को कम करने में सफलता मिल सकती है। इलाज के लिए दवाओं, साइकोथेरेपी, प्रशिक्षण या फिर इन तीनों को मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।
चीनी से कुछ नहीं होता
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि ये बात समझने की जरूरत है कि चीनी या मीठा खाने से एडीएचडी नहीं होता है। न ही बहुत अधिक टीवी देखने से ये बीमारी होती है। घर की खराब स्थिति या खराब स्कूल अथवा किसी खान पान की वजह से भी ये बीमारी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि बच्चों में शिक्षा, सहायता और उनकी रचनात्मकता को उभार कर इस स्थिति को मैनेज किया जा सकता है। ये मां बाप और शिक्षक दोनों की जिम्मेदारी है कि वो समझें कि बच्चे की रचनात्मकता किस ओर है। उसे बढ़ावा देने से बहुत सकारात्मक नतीजे मिल सकते हैं।
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